देवभूमि उत्तराखंड में चारों धामों के अलावा भी ऐसे कई मंदिर है जिनकी एक अलग की मान्यता है और उन मंदिरों में से ही मंदिर है सेम नागराज का मंदिर जिसे पांचवा धाम भी माना जाता है. इस मंदिर में आने से ना केवर मन्नते पूरी होती है बल्कि कई रोगों से भी निजात मिलती है. मन्दिर का सुन्दर द्वार 14 फुट चौड़ा और 27 फुट ऊँचा है। इसमें नागराज फन फैलाये हैं और भगवान कृष्ण नागराज के फन के ऊपर वंशी की धुन में लीन हैं। मन्दिर में प्रवेश के बाद नागराजा के दर्शन होते हैं। मन्दिर के गर्भगृह में नागराजा की स्वयं भू-शिला है। ये शिला द्वापर युग की बतायी जाती है। मन्दिर के दाँयी तरफ गंगु रमोला के परिवार की मूर्तियाँ स्थापित की गयी हैं। सेम नागराजा की पूजा करने से पहले गंगु रमोला की पूजा की जाती है। यह माना जाता है कि इस स्थान पर भगवान श्री कृष्ण कालिया नाग का उद्धार करने आये थे। इस स्थान पर उस समय गंगु रमोला का अधिपत्य था.. श्री कृष्ण ने उनसे यहाँ पर कुछ भू भाग माँगना चाहा लेकिन गंगु रमोला ने यह कह के मना कर दिया कि वह किसी चलते फिरते यात्री को भूमि नहीं देते। फिर श्री कृष्ण ने अपनी माया दिखाई तत्पश्चात गंगु रमोला ने इस शर्त पे कुछ भू भाग श्री कृष्ण को दे दिया कि वो एक हिमा नाम के राक्षस का वध करेंगे जिस से कि वो काफी परेशान थे।
सेम मुखेम का मार्ग हरियाली से भरपूर है मुखेम के आगे रस्ते में ऊंची ऊँची पर्वत चोटियां मन को रोमांचित करती हैं। यह स्थान इतना भव्य सुंदर है कि मन को आनंदित कर देता है सेम मुखेम में घने जंगल के बीच स्थित मंदिर के रास्ते में बांज , बुराँस, खरसु, केदारपती के खूबसूरत वृक्ष हैं जो मन को मोहित करने वाले होते हैं.और वातावरण में एक अलग ही खुशबू बिखेरते है।
उत्तराखंड के श्रीनगर से पहले एक गडोलिया नामक छोटा कस्बा आता है। यहाँ से एक रास्ता नई टिहरी के लिये जाता है दूसरा लम्बगाँव। लम्बगाँव के रास्ते में टिहरी झील को देखा जा सकता है। लम्बगाँव सेम जाने वाले यात्रियों का मुख्य पड़ाव है। पहले जब सेममुखेम तक सड़क नहीं थी तो यात्री एक रात यहाँ विश्राम करने के बाद दूसरे दिन अपनी यात्रा शुरु करते थे। यहाँ से 15 किलोमीटर की खड़ी चढ़ायी चढ़ने के बाद सेम नागराजा के दर्शन किये जाते थे। अब भी मन्दिर से मात्र ढायी किलोमीटर नीचे तलबला सेम तक ही सड़क है। लम्बगाँव से ३३ किलोमीटर का सफर बस या टैक्सी द्वारा तय करके तलबला सेम तक पहुँचा जा सकता है। लम्बगाँव से 10 किलोमीटर आगे कोडार नामक एक छोटा सा कस्बा आता है। यहाँ से घुमावदार और संकरी सड़क से होते हुये मुखेम गाँव आता है जो कि सेम मन्दिर के पुजारियों का गाँव है। ये गंगू रमोला का गाँव है जो कि रमोली पट्टी का गढ़पति था और जिसने सेम मन्दिर का निर्माण करवाया था।
मुखेम से 5 किलोमीटर आगे तलबला सेम आता है जहाँ एक लम्बा-चौड़ा हरा-भरा घास का मैदान है। किनारे पर नागराज का एक छोटा सा मन्दिर है। परम्परा के अनुसार पहले यहाँ पर दर्शन करने होते हैं। यहाँ आस-पास स्थानीय निवासियों की दुकानें हैं.. जहाँ खाने-पीने की व्यवस्था है। यहाँ से सेम मन्दिर तक तकरीबन ढायी किलोमीटर की पैदल चढ़ायी है। घने जंगल के बीच मन्दिर तक रास्ता बना है।
वहीं प्रत्येक तीन साल में सेम मुखेम में एक भव्य मेले का आयोजन होता है, जो कि मारगसीर्स माह के 11 गते को नवम्बर में लगता हैl इस मेले के अनेक धार्मिक महत्व हैं इसलिए इस दिन हजारों की तादात में श्रद्धालुओं की उपस्थिति रहती है। साथ ही यहां के लोगों का कहना है कि इस मेंले मे गांव के सभी लोग उपस्थित होते है. फिर चाहे कोई प्रदेश से बहार रहता हो या देश से. आपको बता दें कि यहां से कई लोग रोजगार और मूल भूत सुविधाओं के ना होते पलायन भी कर चुके है. हालांकि यहां का सुंदर दृश्या और मनमोहक वातावरण लोगों को अपनी और आकर्षित करता है लेकिन यह भी सत्या है कि मूलभूत सुविधाओं के अभाव से लोग यहां से पलायन भी कर रहे है.