Gyanvapi Case: कोर्ट दर कोर्ट भटकता काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का 32 साल पुराना केस एक बार फिर सुर्खियों में हैं, हालांकि इसका इतिहास 350 साल से भी ज्यादा पुराना है. इस मामले में इलाहबाद हाईकोर्ट में 27 जुलाई 2023 को सुनवाई पूरी हो गई है। कोर्ट ने अपना जजमेंट रिजर्व किया है। इस मामले में अदालत अपना फैसला 3 अगस्त को सुनाएगी। निर्णय आने तक एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संस्थान) के सर्वेक्षण पर लगी रोक बरकरार रहेगी, और अब 3 अगस्त तक अंतरिम आदेश प्रभावी रहेगा। ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने एएसआई सर्वे के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की है। पहले सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी समिति की उस याचिका को बहाल किया था, जिसमें उसने मस्जिद परिसर में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के काम पर रोक लगाई थी। वाराणसी जिला अदालत ने 21 जुलाई को ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का आदेश दिया था, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि विवादित हिस्से को छोड़कर पूरे परिसर का सर्वे किया जाए। जानिए Gyanvapi Case के बारे में.
क्या है ज्ञानवापी मामला
ज्ञानवापी केस की पूरी कहानी 17वीं सदी में घटित हुई एक घटना है, जिसमें एक विवादित मस्जिद “ज्ञानवापी मस्जिद” शामिल थी। इस मस्जिद का स्थान वाराणसी (काशी) शहर में है।
मस्जिद बनाने के समय का विवाद था। 1669 ईसा पूर्व में, मुगल वंश के सम्राट औरंगजेब ने अपने शासनकाल के दौरान इस मस्जिद का निर्माण करवाया। इसके लिए, एक पहले मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद नामक संरचना का निर्माण किया गया। मस्जिद के निर्माण के समय एक स्थानीय समुदाय ने इसका विरोध किया, क्योंकि यह स्थान उनके पूजा-प्रार्थना के लिए पवित्र था। इससे यह विवादित मस्जिद बन गई।
ज्ञानवापी मस्जिद का नाम उस धरोहर से लिया गया है जिसके निर्माण के समय स्थानीय लोगों ने इसे “ज्ञानवापी ज्ञानमंदिर” के रूप में जाना था।काशी शहर में इस विवादित मस्जिद के निर्माण से जुड़े अनेक विवाद और मुद्दे समय-समय पर उठते रहे। स्थानीय लोग इस मस्जिद को तोड़ने और पुरानी संरचना को पुनर्निर्माण करने की मांग करते रहे।
वर्ष 2003 में यह विवाद न्यायालय तक पहुंचा और उस वर्ष, वाराणसी जिला अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का आदेश दिया। इस सर्वे के तहत कोर्ट ने कहा था कि विवादित हिस्से को छोड़कर पूरे परिसर का सर्वे किया जाए।इस मामले में एएसआई ने सर्वे के लिए योजना बनाई और मस्जिद के परिसर का मानचित्र तैयार किया। लेकिन इससे पहले इस विवाद से जुड़ी अन्य संगठन और अधिकारी ने भी अपनी आपत्ति जताई और मस्जिद को सर्वे करने के खिलाफ अपील की।
ज्ञानवापी मस्जिद के विवाद से जुड़ी पुनर्निर्माण के मुद्दे के सम्बंध में इलाहबाद हाईकोर्ट में गुरुवार (27 जुलाई) को सुनवाई हुई, जिसमें कोर्ट ने अपना जजमेंट रिजर्व किया। इस मामले में अदालत ने 3 अगस्त को अपना फैसला सुनाने का निर्णय लिया। इस निर्णय तक एएसआई के सर्वे के खिलाफ लगी रोक बरकरार रहेगी, और अब 3 अगस्त को अंतरिम आदेश प्रभावी रहेगा। ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने एएसआई सर्वे के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की है।
यह विवाद आज भी समाज में चर्चा का विषय बना हुआ है और इसका फैसला संबंधित अदालत के जज के हाथ में है।
बदरीनाथ धाम को बौध मठ बताने पर हुआ बवाल
वहीं विवादों में बना ज्ञानवादी मुद्दे पर समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि अगर पुरातत्व विभाग से जांच कराई जा रही है तो सभी हिंदू मंदिरों की भी जांच कराई जानी चाहिए। इनमें से अधिकतर मंदिर बौद्ध मठों को तोड़कर बनाए गए हैं। यहां तक की बदरीनाथ धाम भी आठवीं शताब्दी तक बौद्ध मठ था। वहीं स्वामी प्रसाद मौर्य के इस बयान का देशभर में विरोध देखने को मिल रहा है।
बद्रीनाथ धाम को लेकर सपा नेता द्वारा किया गया ट्वीट राज्य में सियासी माहौल को गरमाने का काम कर गया है। बद्रीनाथ धाम जो की सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए पवित्र स्थल है, आदि काल से जिस धाम को बैकुंड धाम के नाम जाना जाता है, हिंदुओं के चार धामों में से एक धाम बद्रीनाथ धाम को लेकर किए गए इस ट्वीट से उत्तराखंड उत्तरप्रदेश ही नही बल्कि देश में इसका विरोध शुरू हो गया है। उत्तराखंड में सत्तासीन सरकार के मुखिया से लेकर धामों के तीर्थ पुरोहितों तक ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है।
बदरीनाथ धाम को लेकर मचे बबाल पर सीएम धामी का बयान
बदरीनाथ धाम को लेकर मचे इस बबाल पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा हैं कि करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र भू बैंकुठ श्री बदनीनाथ धाम पर समाजवादी पार्टी के नेता की टिप्पणी दुर्भाग्यपूर्ण है। सीएम ने इसे विपक्ष के महाठगबंधन के एक सदस्य के रूप में समाजवादी पार्टी के एक नेता द्वारा दिया गया यह बयान कांग्रेस और उसके सहयोगियों की देश व धर्म विरोधी सोच को दर्शाता है।
बदरी केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने कहा की बद्रीनाथ धाम करोड़ों हिंदुओं की आस्था का प्रतीक है। समाजवादी पार्टी का चरित्र हमेशा से ही हिंदू विरोधी रहा है। वे हिंदुओं के धर्मस्थलों को विवादित बनाने की कोशिश करते हैं और अब सपा नेता का यह बयान भी निंदनीय है।
बद्रीनाथ धाम करोड़ों हिंदुओं की आस्था और विश्वास का प्रतीक है। मौसम और अन्य विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी भारी तादाद में देश- विदेश के कोने कोने से लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान बद्री विशाल के दर्शन के लिए आते हैं। ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य का यह बयान ना केवल बचकाना है बल्कि देश के अन्य हिस्सों में स्थित हिंदुओं की आस्था के प्रतीक अन्य मंदिरों पर दिए गए उनके इस बयान पर तमाम सवाल भी उठने लाजमी है।